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👩‍⚖️ बदलते दौर में शादी का चलन: जब महिलाएं खुद बनीं अपने फैसलों की मुखिया

 

नई दिल्ली: भारतीय समाज में विवाह सदियों से न केवल दो व्यक्तियों का, बल्कि दो परिवारों का मिलन माना जाता रहा है। पारंपरिक रूप से, विवाह संबंधी अधिकांश निर्णय परिवार के बुजुर्गों या पुरुषों द्वारा लिए जाते थे। हालाँकि, पिछले कुछ दशकों में, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक बदलावों ने इस परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल दिया है। वरिष्ठ पत्रकार क्षमा शर्मा के विश्लेषण के अनुसार, भारतीय विवाहों में अब एक अभूतपूर्व बदलाव देखा जा रहा है: महिलाएँ अब अपने जीवनसाथी और अपने विवाह की शर्तों का निर्णय खुद ले रही हैं, वे मुखर होकर अपने अधिकारों और अपेक्षाओं को सामने रख रही हैं। यह केवल एक सामाजिक बदलाव नहीं, बल्कि रिश्तों में बढ़ती समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का स्पष्ट प्रमाण है।

 

🌟 नए युग की महिला, नए रिश्ते की परिभाषा

 

आधुनिक भारतीय महिला अब केवल एक मूक सहमति देने वाली सदस्य नहीं रही। शिक्षा और करियर के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति ने उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया है। इस आत्मनिर्भरता ने उन्हें वह आत्मविश्वास दिया है कि वे अपनी निजी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण फैसले—शादी—को अपने हाथों में लें।

1. जीवनसाथी का चुनाव: जहाँ पहले जाति, धर्म और गोत्र जैसे पारंपरिक कारक सर्वोपरि थे, वहीं आज की महिला व्यक्तिगत अनुकूलता, भावनात्मक जुड़ाव और आपसी समझ को प्राथमिकता दे रही है। वे उस व्यक्ति को चुन रही हैं जिसके साथ उनका बौद्धिक और भावनात्मक तालमेल बेहतर हो, न कि उसे जिसे समाज या परिवार ने उनके लिए उपयुक्त समझा हो।

2. विवाह की शर्तें और शर्तें (Terms & Conditions): सिर्फ़ पार्टनर चुनना ही नहीं, बल्कि शादी के बाद की जीवनशैली पर भी महिलाएँ खुलकर बात कर रही हैं। ‘शादी कैसे होगी?’ से लेकर ‘समझौते किस हद तक किए जाएँगे?’ तक के सवाल अब खुले मंच पर पूछे जा रहे हैं। इसमें करियर के बाद के विकल्प, बच्चों का पालन-पोषण, वित्तीय जिम्मेदारियाँ और यहाँ तक कि संयुक्त या एकल परिवार में रहने का फैसला भी शामिल है। महिलाएँ स्पष्ट कर रही हैं कि वे अपने प्रोफेशनल लक्ष्यों के साथ समझौता करने को तैयार नहीं हैं।

 

🤝 रिश्तों में समानता का बढ़ता महत्व

 

यह बदलाव दर्शाता है कि भारतीय समाज में रिश्ते अब ‘मालिक-सेवक’ या ‘अधिकार-कर्तव्य’ के पारंपरिक ढाँचे से निकलकर ‘समान भागीदारी’ (Equal Partnership) की ओर बढ़ रहे हैं।

  • पारदर्शिता और संवाद: महिलाएँ अब अपने पार्टनर से शादी से पहले ही अपनी अपेक्षाएँ और सीमाएँ (Boundaries) स्पष्ट कर रही हैं। यह संवाद रिश्ते को शुरू से ही मजबूत और पारदर्शी बनाता है।
  • निर्णय लेने की शक्ति: विवाह के बाद घर और परिवार से संबंधित छोटे-बड़े सभी फैसलों में वे समान भागीदारी की माँग कर रही हैं। उनका मानना है कि उनका जीवन भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनके पार्टनर का।

 

💡 समाज पर प्रभाव: प्रगति की ओर कदम

 

यह बढ़ता चलन भारतीय समाज के लिए एक सकारात्मक प्रगति है। यह न केवल महिलाओं को सशक्त बना रहा है, बल्कि विवाह जैसी संस्था को भी अधिक लोकतांत्रिक और मजबूत बना रहा है। जब कोई रिश्ता आपसी सहमति और सम्मान पर आधारित होता है, तो उसके सफल होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

संक्षेप में, भारतीय विवाह अब केवल सामाजिक रस्म नहीं रहा, बल्कि दो समान व्यक्तियों के बीच एक स्वैच्छिक और जागरूक अनुबंध बन रहा है, जहाँ महिला अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा करते हुए, अपने जीवन की दिशा खुद तय कर रही है। यह निश्चित रूप से भारतीय समाज में सशक्तिकरण और समानता की एक नई सुबह का संकेत है।

©️ श्री गंगानगर न्यूज़ ©️