🢀
रिश्तों में ‘अहंकार की अग्नि’: मामूली बातों पर भी तलाक के बढ़ते मामले और दांपत्य जीवन का बदलता स्वरूप 💔

 

आधुनिकता की तेज रफ्तार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की प्रबल चाहत और सामाजिक ढांचे में आ रहे मूलभूत बदलावों के बीच, भारतीय वैवाहिक संबंध एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहे हैं। जिस विवाह संस्था को सदियों से सात जन्मों का अटूट बंधन माना जाता था, अब वह ‘अहंकार की अग्नि’ में जलकर मामूली मनमुटावों पर भी बिखरती जा रही है। पारिवारिक न्यायालयों (Family Courts) के आंकड़े और रिलेशनशिप विशेषज्ञों की राय इस बात की पुष्टि करती है कि आज के दौर में तलाक की अर्जियों की बढ़ती संख्या के पीछे सबसे बड़ा कारण है – ‘ईगो’ या व्यक्तिगत अहंकार

पहले, पति-पत्नी अक्सर रिश्ते को बचाने के लिए त्याग करते थे, लेकिन आज के दौर में, जब दोनों ही आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं, तब ‘मैं सही हूँ’ की भावना ‘हमारा रिश्ता’ की भावना पर भारी पड़ रही है।

 

1. अहंकार की जड़ें और आधुनिक जीवनशैली

 

तलाक के मामलों में बढ़ोतरी के लिए केवल एक कारक जिम्मेदार नहीं है, बल्कि यह कई सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों का जटिल परिणाम है:

 

व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बढ़ता महत्व:

 

आधुनिक शिक्षा और करियर उन्मुख जीवन ने व्यक्तियों को अपनी पहचान और स्वतंत्रता के प्रति अत्यधिक जागरूक बना दिया है। जहां यह जागरूकता सशक्तिकरण के लिए अच्छी है, वहीं यह वैवाहिक जीवन में समझौते की गुंजाइश को कम कर देती है। दोनों पक्षों में से कोई भी अपने ‘कम्फर्ट ज़ोन’ या ‘जीवनशैली की प्राथमिकताओं’ से समझौता करने को तैयार नहीं होता, जिससे टकराव की स्थिति में रिश्ते को बचाने के बजाय अलग होने का रास्ता आसान लगता है।

 

आर्थिक स्वतंत्रता और शून्य निर्भरता:

 

महिलाओं की बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता ने उन्हें उन रिश्तों से बाहर निकलने की शक्ति दी है, जिनमें वे पहले सामाजिक या वित्तीय कारणों से फँसी रहती थीं। हालांकि यह एक सकारात्मक बदलाव है, लेकिन जब दोनों पार्टनर आर्थिक रूप से समान रूप से मजबूत होते हैं, तो अहंकार का टकराव अधिक होता है। कोई भी पक्ष यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होता कि रिश्ते को बनाए रखने के लिए उसे दूसरे की शर्तों या इच्छाओं को मानना पड़ सकता है।

 

सोशल मीडिया और तुलनात्मक जीवन:

 

सोशल मीडिया ने एक ऐसी संस्कृति को जन्म दिया है जहां हर व्यक्ति अपने जीवन को ‘परफेक्ट’ दिखाने की होड़ में है। लोग लगातार अपने पार्टनर और रिश्ते की तुलना दूसरों के तथाकथित ‘खुशहाल’ रिश्तों से करते हैं। यह तुलनात्मक मानसिकता अपेक्षाओं के एक अव्यावहारिक बोझ को जन्म देती है, जिससे पार्टनर की छोटी-छोटी कमियाँ भी पहाड़ जैसी लगने लगती हैं और अहंकार उस रिश्ते को खत्म करने का बहाना ढूंढ लेता है।

 

2. वह ‘छोटी चिंगारी’ जो रिश्ते की ‘अग्नि’ बन जाती है

 

विशेषज्ञों के अनुसार, आजकल तलाक के मामले उन गंभीर कारणों (जैसे शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न) से कम, बल्कि मामूली मनमुटावों से ज्यादा बढ़ रहे हैं:

  • आपसी संवाद (Communication Gap) का अभाव: आधुनिक जोड़े घंटों तक अपने मोबाइल या काम में व्यस्त रहते हैं, लेकिन एक-दूसरे के साथ गुणवत्तापूर्ण बातचीत (Quality Time) करने से बचते हैं। संवाद की कमी से छोटी-छोटी गलतफहमियाँ और शक बड़े हो जाते हैं। अहंकार तब संवाद का रास्ता पूरी तरह बंद कर देता है।
  • ‘सही साबित होने’ की जिद: आज का सबसे बड़ा टकराव यह है कि दोनों पार्टनर हमेशा खुद को ‘सही’ साबित करने की जिद पर अड़े रहते हैं। वैवाहिक जीवन में ‘जीत’ या ‘हार’ नहीं होती, बल्कि केवल ‘समझौता’ और ‘सामंजस्य’ होता है, लेकिन अहंकार समझौते को कमजोरी मानता है।
  • पारिवारिक भूमिकाओं पर टकराव: घर के काम, बच्चों की परवरिश, या वित्तीय फैसले – इन पारंपरिक भूमिकाओं पर आधुनिक युग में पति-पत्नी के बीच सहमति नहीं बन पाती। जब कोई एक पक्ष दूसरे पर प्रभुत्व दिखाने की कोशिश करता है, तो दूसरा पक्ष इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला मानकर अहंकारवश रिश्ते से अलग होने का निर्णय लेता है।
  • शक-शुबहा और भरोसे की कमी: सोशल मीडिया और नए रिश्तों की आसान उपलब्धता ने शक को रिश्ते में घुसने का मौका दिया है। अहंकार इस शक को खुद दूर करने के बजाय, पार्टनर पर हावी होने और नियंत्रित करने की कोशिश करता है, जिससे अंततः विश्वास की नींव ढह जाती है।

 

3. दांपत्य जीवन में त्याग और लचीलेपन की कमी

 

यह प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि दांपत्य जीवन के मूलभूत स्तंभ – त्याग, समझदारी, और लचीलापन – कमजोर पड़ रहे हैं:

पुराने रिश्ते का मूल्य (त्याग) आधुनिक रिश्ते का टकराव (अहंकार)
त्याग: रिश्ते की बेहतरी के लिए अपनी इच्छाओं को दबाना। अधिकार: मेरी खुशी सबसे पहले, समझौता कमजोरी है।
लचीलापन: पार्टनर की नई आदतों और जीवनशैली के अनुसार ढलना। कठोरता: मैं जैसा हूँ, मुझे वैसा ही स्वीकार करो या अलग हो जाओ।
क्षमाशीलता: गलतियों को माफ करके आगे बढ़ना। प्रतिशोध: गलती को बार-बार याद दिलाना और अहंकार को शांत करना।
पारस्परिक सम्मान: मतभेद होने पर भी पार्टनर के अस्तित्व का सम्मान करना। प्रभुत्व: बहस में जीतना और पार्टनर को नीचा दिखाना।

 

4. निष्कर्ष और समाधान की आवश्यकता

 

अहंकार की यह अग्नि न केवल दो व्यक्तियों के बीच के रिश्ते को जला रही है, बल्कि यह बच्चों और पूरे परिवार के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। तलाक के बढ़ते मामलों को कम करने के लिए केवल कानूनी प्रक्रिया को जटिल बनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर समाधान खोजना आवश्यक है:

  1. प्री-मैरिटल काउंसलिंग: विवाह से पहले जोड़ों को रिश्ते की वास्तविकताओं, जिम्मेदारी और अहंकार को नियंत्रित करने के महत्व के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  2. गुणवत्तापूर्ण संवाद पर जोर: जोड़ों को सिखाया जाना चाहिए कि मतभेद होने पर कैसे आक्रामक हुए बिना अपनी बात रखी जाए और पार्टनर की बात को सुना जाए।
  3. ‘हम’ की भावना को मजबूत करना: व्यक्तिगत आकांक्षाओं को रिश्ते के सामूहिक लक्ष्य से जोड़ने पर जोर दिया जाना चाहिए, ताकि ‘मैं’ से ऊपर ‘हम’ की भावना हावी हो सके।

जब तक आधुनिक जोड़े यह नहीं समझेंगे कि विवाह दो अधूरे लोगों को एक पूर्ण इकाई बनाने की प्रक्रिया है, और इसमें अहंकार के लिए कोई जगह नहीं है, तब तक तलाक के मामलों की यह बढ़ती संख्या भारतीय समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बनी रहेगी। रिश्ते की मजबूती अहंकार की ऊंचाई में नहीं, बल्कि त्याग और क्षमाशीलता की गहराई में निहित होती है।

©️ श्री गंगानगर न्यूज़ ©️