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⚔️ श्रीगंगानगर में गरमाया बीजेपी विधायक-प्रशासन तकरार का मामला: प्रोटोकॉल विवाद से राजनीतिक तनाव

श्रीगंगानगर में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक जयदीप बिहाणी और जिला कलेक्टर के बीच शुरू हुआ प्रोटोकॉल विवाद अब एक गंभीर राजनीतिक रंग ले चुका है, जिससे प्रशासन और सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच तनाव बढ़ गया है। यह मामला मूल रूप से एक प्रशासनिक कार्यक्रम में प्रोटोकॉल का पालन न होने के आरोप से शुरू हुआ था, लेकिन अब शहर में लगे होर्डिंग्स के कारण इसने व्यापक ध्यान आकर्षित किया है।


प्रोटोकॉल विवाद की शुरुआत

 

यह विवाद तब शुरू हुआ जब बीजेपी विधायक जयदीप बिहाणी ने एक सरकारी कार्यक्रम में जिला कलेक्टर पर प्रोटोकॉल के उल्लंघन का आरोप लगाया। विधायक का कहना था कि जनप्रतिनिधियों को सरकारी आयोजनों में उचित सम्मान और स्थान नहीं दिया गया, जो उनके पद की गरिमा के खिलाफ है। उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की उपेक्षा की जा रही है। इस घटना के बाद विधायक और कलेक्टर के बीच सार्वजनिक रूप से तीखी बहस भी हुई, जिसके वीडियो और खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं, जिससे यह मुद्दा स्थानीय स्तर पर सुर्खियों में आ गया।


कार्यकर्ताओं की नाराजगी और होर्डिंग्स का प्रदर्शन

 

बहस के शांत न होने और विधायक द्वारा लगातार नाराजगी व्यक्त किए जाने के बाद, बीजेपी कार्यकर्ताओं ने अब इस विरोध को एक नया आयाम दे दिया है। शहर के प्रमुख चौराहों और सड़कों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए गए हैं, जिनमें प्रशासन के खिलाफ सीधी नाराजगी व्यक्त की गई है। इन पोस्टरों पर प्रमुख रूप से लिखा गया है: “सरदार पटेल और बिरसा मुंडा का अपमान नहीं सहेंगे।”

कार्यकर्ताओं का मानना है कि प्रोटोकॉल का उल्लंघन केवल विधायक का अपमान नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र और उन महान नेताओं के आदर्शों का अपमान है जिन्होंने देश के लिए काम किया। सरदार वल्लभ भाई पटेल और बिरसा मुंडा जैसे राष्ट्रीय प्रतीकों का नाम इस्तेमाल करना इस मामले को व्यक्तिगत या स्थानीय विवाद से उठाकर वैचारिक संघर्ष का रूप देता है। यह बीजेपी कार्यकर्ताओं की ओर से एक स्पष्ट संदेश है कि वे इसे मात्र एक प्रशासनिक त्रुटि नहीं, बल्कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के प्रति प्रशासनिक अहंकार के रूप में देख रहे हैं।


प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल

 

इस घटना ने श्रीगंगानगर की प्रशासनिक व्यवस्था और जनप्रतिनिधि-प्रशासनिक अधिकारी संबंधों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विधायक बिहाणी का आरोप है कि कलेक्टर के नेतृत्व में प्रशासन मनमाने तरीके से काम कर रहा है और जनप्रतिनिधियों के सुझावों या उपस्थिति को महत्व नहीं दे रहा है। दूसरी ओर, प्रशासनिक खेमे से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह मामला नियमों और प्रक्रियाओं की व्याख्या से जुड़ा हुआ है।


राजनीतिक निहितार्थ और आगे की राह

 

यह तकरार ऐसे समय में सामने आई है जब राज्य में बीजेपी की सरकार है। ऐसी स्थिति में, अपनी ही पार्टी के विधायक का प्रशासन के खिलाफ खुले तौर पर मुखर होना, सरकार के लिए भी असहज स्थिति पैदा कर रहा है।

  1. सरकारी छवि पर असर: इस विवाद से स्थानीय प्रशासन की छवि पर नकारात्मक असर पड़ रहा है और यह संदेश जा रहा है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों और अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी है।

  2. हाईकमान का हस्तक्षेप: उम्मीद की जा रही है कि पार्टी का हाईकमान इस मामले में हस्तक्षेप कर सकता है ताकि विधायक और जिला कलेक्टर के बीच के मतभेदों को दूर किया जा सके और राजनीतिक तनाव कम हो।

  3. विरोध जारी: कार्यकर्ताओं का होर्डिंग्स लगाकर विरोध प्रदर्शन यह दर्शाता है कि यह मुद्दा जल्दी शांत होने वाला नहीं है। यदि प्रशासन ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया, तो बीजेपी कार्यकर्ता भविष्य में और बड़े विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दे रहे हैं।

फिलहाल, सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राज्य सरकार और पार्टी आलाकमान इस बढ़ते राजनीतिक और प्रशासनिक टकराव को शांत करने के लिए क्या कदम उठाते हैं। यह घटना लोकतांत्रिक ढांचे में जनप्रतिनिधि की सर्वोच्चता और प्रशासनिक दक्षता के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता को उजागर करती है।

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