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📢 मजदूर यूनियन का हल्ला बोल: केंद्र के 4 नए श्रम कानूनों पर ‘पूंजीवादी’ होने का आरोप

श्री गंगानगर में अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर यूनियन की प्रदेशाध्यक्ष दुर्गा स्वामी ने 24 नवंबर 2025 को केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए चार नए श्रम संहिताओं (Labour Codes) की कड़ी निंदा की। यूनियन ने इन कानूनों को मजदूर विरोधी और औद्योगिक घरानों के पक्ष में करार दिया है, जिससे देश के संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के करोड़ों श्रमिकों के अधिकारों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।


विरोध का मूल कारण: ‘पूंजीपतियों को फायदा’

 

यूनियन की प्रदेशाध्यक्ष दुर्गा स्वामी ने अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि ये नए श्रम कानून, जिनका उद्देश्य पुराने और जटिल श्रम कानूनों को सरल बनाना बताया गया है, वास्तव में मजदूरों के हितों की रक्षा करने के बजाय केवल औद्योगिक घरानों और पूंजीपतियों के पक्ष में झुके हुए हैं। उनका मुख्य आरोप यह है कि इन संहिताओं को मजदूरों के सुरक्षा कवच को हटाने और नियोक्ताओं (Employers) को अधिक मनमानी शक्ति देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

दुर्गा स्वामी ने मजदूर वर्ग के लिए इन कानूनों को अन्यायपूर्ण बताते हुए कहा कि सरकार ने इन्हें बनाते समय मजदूर संगठनों और श्रमिक यूनियनों के सुझावों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है।


जिन चार श्रम संहिताओं का विरोध हो रहा है:

 

केंद्र सरकार ने 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को मिलाकर चार व्यापक श्रम संहिताओं (Codes) में बदल दिया है:

  1. वेतन संहिता, 2019 (Code on Wages, 2019): न्यूनतम मजदूरी और बोनस से संबंधित।

  2. औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (Industrial Relations Code, 2020): ट्रेड यूनियन, रोजगार की शर्तें, और औद्योगिक विवादों से संबंधित।

  3. सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (Code on Social Security, 2020): भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और मातृत्व लाभ से संबंधित।

  4. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020): श्रमिकों की सुरक्षा और कार्यस्थल की स्थितियों से संबंधित।


यूनियन के प्रमुख आरोप और चिंताएँ

 

मजदूर यूनियनें विशेष रूप से औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के कुछ प्रावधानों पर गंभीर आपत्ति जता रही हैं:

  • छंटनी का सरलीकरण: नए प्रावधानों के तहत, 300 श्रमिकों तक वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना ही श्रमिकों की छंटनी (Layoffs) करने या उन्हें काम से निकालने (Retrenchment) की अनुमति होगी। यूनियन का मानना है कि इससे नियोक्ता आसानी से मजदूरों को नौकरी से हटा सकेंगे और रोजगार असुरक्षित हो जाएगा।

  • ट्रेड यूनियनों की शक्ति कमजोर: हड़ताल पर जाने के नियमों को और अधिक कड़ा बना दिया गया है। यूनियन का कहना है कि यह प्रावधान मजदूरों के विरोध करने और सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining) के संवैधानिक अधिकार को कमजोर करता है।

  • निश्चित अवधि का रोजगार (Fixed Term Employment): यद्यपि यह कुछ लचीलापन देता है, लेकिन यूनियन को डर है कि नियोक्ता स्थायी नौकरियों को खत्म करके सभी श्रमिकों को निश्चित अवधि के अनुबंधों पर रख सकते हैं, जिससे सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित होना पड़ेगा।

  • सामाजिक सुरक्षा की पहुँच: हालांकि सामाजिक सुरक्षा संहिता में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को शामिल करने की बात कही गई है, लेकिन यूनियन का आरोप है कि इन योजनाओं के लिए फंडिंग और कार्यान्वयन की स्पष्ट व्यवस्था नहीं है, जिससे करोड़ों असंगठित मजदूरों को लाभ नहीं मिल पाएगा।

कुल मिलाकर, मजदूर यूनियन का मानना है कि इन संहिताओं से ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन यह श्रमिकों के शोषण की कीमत पर होगा, जो ‘ईज़ ऑफ लिविंग’ के सिद्धांत के खिलाफ है।

©️ श्री गंगानगर न्यूज़ ©️