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युवाओं में हार्ट अटैक का बढ़ता खतरा: 40 से कम उम्र के 25% लोगों की मौतें और बदलती जीवनशैली का संकट 💔

मशहूर सिंगर-एक्टर ऋषभ टंडन (उर्फ फकीर) के अचानक और दुखद निधन ने भारतीय स्वास्थ्य परिदृश्य में एक गंभीर खतरे की घंटी बजा दी है। उनका असामयिक निधन, जो दिल का दौरा पड़ने से हुआ, इस चौंकाने वाली सच्चाई को रेखांकित करता है कि हृदय रोग (Heart Disease) अब केवल बुढ़ापे की बीमारी नहीं रहे; वे तेजी से युवाओं को अपना शिकार बना रहे हैं। हालिया स्वास्थ्य रिपोर्टों के अनुसार, हार्ट अटैक से होने वाली मौतों में से लगभग 25% मौतें 40 साल से कम उम्र के लोगों की हो रही हैं, जो एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है।

यह डेटा चिकित्सा समुदाय और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह दर्शाता है कि आधुनिक जीवनशैली हमारे हृदय स्वास्थ्य को कितनी तेजी से खोखला कर रही है।


 

युवाओं में हार्ट अटैक के प्रमुख कारण: जीवनशैली का त्रिकोण

 

विशेषज्ञों का मानना है कि युवाओं में हृदय रोगों की बढ़ती दर के पीछे मुख्य रूप से चार कारक जिम्मेदार हैं, जो आधुनिक जीवनशैली के अभिन्न अंग बन चुके हैं:

 

1. तनावपूर्ण और भागदौड़ भरी जीवनशैली (Stressful Lifestyle)

 

  • मानसिक तनाव: करियर की प्रतिस्पर्धा, आर्थिक असुरक्षा, और काम के लंबे घंटे (Long Working Hours) युवाओं में पुराने तनाव (Chronic Stress) को जन्म देते हैं। तनाव कोर्टिसोल और एड्रेनालिन जैसे हार्मोन का स्राव बढ़ाता है, जो रक्तचाप (Blood Pressure) को बढ़ाते हैं और धमनियों (Arteries) में सूजन (Inflammation) पैदा करते हैं, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
  • नींद की कमी: देर रात तक जागना और अपर्याप्त नींद लेना शरीर की मरम्मत प्रक्रिया को बाधित करता है। नींद की कमी से हृदय गति (Heart Rate) और रक्तचाप प्रभावित होते हैं, जिससे हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।

 

2. अनियमित और अस्वास्थ्यकर खान-पान (Irregular and Unhealthy Diet)

 

  • प्रोसेस्ड फूड और फास्ट फूड: युवाओं में पैकेज्ड और प्रोसेस्ड फूड, डीप-फ्राइड स्नैक्स और शुगर-युक्त पेय पदार्थों का सेवन बढ़ा है। ये खाद्य पदार्थ अस्वास्थ्यकर वसा (Unhealthy Fats), ट्रांस फैट और सोडियम से भरपूर होते हैं, जो सीधे कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) और ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को बढ़ाते हैं।
  • ओबेसिटी और डायबिटीज: खराब खान-पान के कारण युवावस्था में ही मोटापा (Obesity) और टाइप-2 डायबिटीज जैसी मेटाबॉलिक समस्याएँ शुरू हो जाती हैं, जो हृदय रोग के लिए प्रमुख जोखिम कारक हैं।

 

3. व्यायाम की कमी (Lack of Physical Activity)

 

  • बैठने वाला जीवन (Sedentary Lifestyle): टेक्नोलॉजी के बढ़ते उपयोग और डेस्क जॉब के कारण अधिकांश युवा शारीरिक रूप से निष्क्रिय (Physically Inactive) हो गए हैं। व्यायाम की कमी से रक्त संचार धीमा होता है, कैलोरी जमा होती है और हृदय की मांसपेशियाँ कमजोर होने लगती हैं।
  • हृदय स्वास्थ्य: नियमित व्यायाम धमनियों को स्वस्थ और लचीला बनाए रखने में मदद करता है, जबकि इसकी कमी से धमनियों में प्लाक (Plaque) जमा होने का खतरा बढ़ जाता है।

 

4. अत्यधिक धूम्रपान और शराब का सेवन (Excessive Smoking and Alcohol)

 

  • धूम्रपान: तंबाकू का सेवन हृदय की धमनियों को संकुचित करता है, जिससे रक्त का थक्का (Blood Clot) बनने का खतरा बढ़ जाता है और हार्ट अटैक की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
  • शराब: अत्यधिक शराब के सेवन से रक्तचाप बढ़ता है और कार्डियोमायोपैथी (हृदय की मांसपेशियों का कमजोर होना) का खतरा उत्पन्न होता है।

 

खतरे की घंटी: 30 से 40 वर्ष के आयु वर्ग के लिए चेतावनी

 

डॉक्टरों ने विशेष रूप से 30 से 40 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों को अत्यधिक सतर्क रहने की सलाह दी है। इस आयु वर्ग में, हृदय रोगों का निदान अक्सर देर से होता है, क्योंकि युवा लक्षणों को गैस, थकान या अत्यधिक तनाव मानकर नजरअंदाज कर देते हैं।

 

डॉक्टरों की आवश्यक सलाह:

 

    1. नियमित स्वास्थ्य जांच (Regular Checkups): 30 वर्ष की आयु के बाद, हर साल ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल (विशेषकर LDL और HDL), ब्लड शुगर और ईसीजी/ट्रेडमिल टेस्ट (TMT) कराना अनिवार्य है।

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  1. जीवनशैली में तुरंत बदलाव:
    • आहार: फल, सब्जियां, साबुत अनाज और कम वसा वाले प्रोटीन को प्राथमिकता दें। जंक फूड और मीठे पेय से बचें।
    • व्यायाम: रोजाना कम से कम 30 मिनट मध्यम तीव्रता का व्यायाम (तेज चलना, दौड़ना, योग) जरूर करें।
    • तनाव प्रबंधन: ध्यान (Meditation), योग और पर्याप्त नींद (7-8 घंटे) के माध्यम से तनाव को नियंत्रित करें।
    • बुरी आदतों से दूरी: धूम्रपान और अत्यधिक शराब का सेवन तुरंत छोड़ दें।

युवाओं में हार्ट अटैक का बढ़ता ग्राफ एक संकेत है कि हमें अपने जीवन जीने के तरीके पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। यह न केवल स्वास्थ्य का, बल्कि राष्ट्रीय उत्पादकता और भविष्य का भी सवाल है।

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