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तलाक के बाद अहंकार को करें विदा: सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी, कहा- बच्चे का भविष्य सबसे ऊपर

नई दिल्ली: वैवाहिक विवादों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्जी देने वाले एक दंपती की शादी को खत्म करने की मंजूरी दे दी। इस दौरान कोर्ट ने अलग हो रहे जोड़ों को एक ऐसी भावनात्मक और नैतिक सीख दी है, जो कानूनी अलगाव के बाद भी उनके बच्चे के लिए बहुत मायने रखती है। कोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा कि जब विवाह का बंधन समाप्त हो गया है, तो पति और पत्नी दोनों को अपने “अहंकार” (Ego) को भी त्याग देना चाहिए।

 

“शादी खत्म, तो अहंकार भी खत्म”

 

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए रिश्तों की जटिलता पर प्रकाश डाला। दोनों पक्षों द्वारा आपसी सहमति से शादी खत्म करने की याचिका दायर करने पर, बेंच ने टिप्पणी की:

“शादी में अहंकार होता है। जब शादी खत्म हो गई है, तो अहंकार भी खत्म हो जाना चाहिए। अब बच्चे की देखभाल करें।”

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी केवल कानूनी आदेश नहीं है, बल्कि एक नैतिक मार्गदर्शन है। यह रेखांकित करता है कि तलाक की कार्यवाही अक्सर व्यक्तिगत अहंकार और प्रतिशोध की लड़ाई बन जाती है, जो तलाक के बाद भी दोनों पक्षों को मानसिक रूप से जकड़े रखती है और सबसे ज्यादा बच्चों को प्रभावित करती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अलगाव के बाद, पूर्व-पार्टनर के रूप में नहीं, बल्कि बच्चे के माता-पिता के रूप में एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सहयोग बनाए रखना अनिवार्य है।

 

बच्चे की भलाई और परवरिश पर जोर

 

शादी को खत्म करने के साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग बच्चे की भलाई को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।

  • कस्टडी का फैसला: कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी मां को सौंपी।
  • वित्तीय जिम्मेदारी: इसके साथ ही, कोर्ट ने बच्चे की परवरिश और शिक्षा के खर्चों को सुनिश्चित करने के लिए पिता को नियमित मासिक राशि देने का निर्देश दिया।

यह फैसला इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि कानूनी अलगाव के बाद भी, बच्चे के लिए माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए यह आवश्यक है कि दोनों माता-पिता, व्यक्तिगत मतभेदों को एक तरफ रखकर, सहयोग और जिम्मेदारी की भावना से काम करें। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश देश भर के उन लाखों जोड़ों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है, जो तलाक के बाद भी बच्चों की परवरिश में शामिल होते हैं, और उन्हें यह सिखाता है कि पारिवारिक शांति बच्चे के लिए सबसे बड़ा उपहार है।

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