
मुंबई/चेन्नई: भारत में पारिवारिक और सामाजिक ढांचे में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। जहाँ पहले तलाक को मुख्य रूप से युवा जोड़ों की समस्या माना जाता था, वहीं अब 40 से 55 वर्ष की आयु के बीच तलाक (Divorce) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पश्चिमी देशों में इस घटना को ‘ग्रे डिवोर्स’ (Gray Divorce) कहा जाता है, जिसका अर्थ है लंबी शादी के बाद लिया गया अलगाव का फैसला। रिलेशनशिप विशेषज्ञों का मानना है कि इन मिडलाइफ तलाक के पीछे एक प्रमुख और अक्सर अनदेखा कारण महिलाओं में होने वाला मेनोपॉज (Menopause) है।
हार्मोनल बदलाव: मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर
मेनोपॉज, जो आमतौर पर 45 से 55 वर्ष की आयु के बीच होता है, एक महिला के जीवन में कई बड़े शारीरिक और मानसिक बदलाव लाता है।
- एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन में गिरावट: मेनोपॉज के दौरान प्रजनन हार्मोन—एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन—के स्तर में भारी गिरावट आती है।
- मूड स्विंग और चिड़चिड़ापन: इन हार्मोनल बदलावों के कारण महिलाओं को गंभीर मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन, अचानक गर्मी लगना (हॉट फ्लैशेस), नींद की कमी और थकान का सामना करना पड़ता है।
- कामेच्छा में कमी: हार्मोनल परिवर्तन के कारण कामेच्छा (Libido) में भी कमी आती है, जिससे पति-पत्नी के अंतरंग संबंधों पर सीधा और नकारात्मक असर पड़ता है।
ये शारीरिक और मानसिक लक्षण महिला के दैनिक जीवन और उनके रिश्ते की गतिशीलता पर भारी दबाव डालते हैं।
संवाद की कमी और रिश्तों पर तनाव
विशेषज्ञों का कहना है कि मेनोपॉज के दौरान होने वाले ये तीव्र शारीरिक और मानसिक बदलाव कई बार पति-पत्नी के बीच संवाद की कमी और बढ़ते तनाव को जन्म देते हैं।
- एक तरफ, महिला खुद के अंदर हो रहे बदलावों से जूझ रही होती है, तो दूसरी तरफ, उसका साथी इन बदलावों को समझ नहीं पाता या इसे सामान्य ‘चिड़चिड़ापन’ मान लेता है।
- इस उम्र में बच्चे बड़े हो चुके होते हैं या घर छोड़कर जा चुके होते हैं (‘एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम’), जिससे पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ अधिक समय बिताना पड़ता है। यदि रिश्ते में पहले से ही दरारें हों, तो मेनोपॉज से उपजा तनाव उन दरारों को चौड़ा कर देता है, जिससे रिश्ता टूटने के कगार पर पहुँच जाता है।
विशेषज्ञ सलाह: काउंसलिंग और समझदारी
विशेषज्ञ अब इस अनदेखे पहलू पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दे रहे हैं। उनका मानना है कि ‘ग्रे डिवोर्स’ को रोकने के लिए, मेनोपॉज के दौरान महिला के साथी को भावनात्मक रूप से अधिक सहयोगी होना चाहिए। काउंसलिंग के माध्यम से दोनों पार्टनर को इन जैविक बदलावों को समझने और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखने में मदद मिल सकती है, जिससे लंबे समय से चले आ रहे रिश्ते को टूटने से बचाया जा सके।