
श्रीगंगानगर जिले में घग्घर नदी के उफान ने एक बार फिर किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। स्थानीय प्रशासन की कथित लापरवाही के कारण घग्घर नदी का एक महत्वपूर्ण बांध (बंधा) टूट गया, जिससे बाढ़ का पानी तेजी से खेतों में फैल गया और हजारों बीघा फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो गईं। यह घटना उस समय हुई जब किसान पहले से ही इस खतरे को लेकर प्रशासन से गुहार लगा रहे थे।
प्रशासन की अनदेखी बनी तबाही का कारण
किसानों का आरोप है कि घग्घर नदी में पानी का बहाव लगातार बढ़ रहा था और बांध में दरारें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। स्थानीय किसान लगातार जिला कलेक्टर और सिंचाई विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर रहे थे और 24 घंटे पहले ही बांध को मजबूत करने या वैकल्पिक उपाय करने की गुहार लगा चुके थे।
लेकिन, किसानों की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया। बताया जाता है कि कलेक्टर से गुहार लगाने के 24 घंटे बाद भी जब तक अधिकारी और पर्याप्त संसाधन मौके पर पहुंचे, तब तक बांध टूट चुका था। देर रात या सुबह तड़के बांध टूटने से पानी का तेज बहाव निचले इलाकों और खेतों की ओर मुड़ गया, जिससे किसानों को अपनी फसलें बचाने का मौका भी नहीं मिला।
फसलों को भारी नुकसान
श्रीगंगानगर, जो अपनी नरमा (कपास), ग्वार, मूंग और धान की फसलों के लिए जाना जाता है, में इस घटना से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। बांध टूटने के कारण बाढ़ का पानी कई किलोमीटर तक खेतों में भर गया। हजारों बीघा में खड़ी फसलें पूरी तरह से जलमग्न हो गईं। पानी भर जाने के कारण अब इन फसलों के सड़ने और पूरी तरह नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। किसानों ने अपनी मेहनत और लाखों का निवेश इन फसलों पर किया था, जो अब मिट्टी में मिल गया है। किसानों के अनुसार, यह नुकसान इतना बड़ा है कि कई किसान परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।
इलाके में मचा हाहाकार
बांध टूटने की खबर फैलते ही श्रीगंगानगर और आसपास के गांवों में हाहाकार मच गया। प्रभावित किसानों ने तुरंत मौके पर पहुंचकर अपने स्तर पर नुकसान को कम करने की कोशिश की, लेकिन पानी का बहाव इतना तेज था कि कुछ भी करना संभव नहीं था। किसानों ने प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की और इसे मानव निर्मित आपदा बताया।
प्रशासन अब आनन-फानन में नुकसान का सर्वेक्षण करने और टूटे हुए बांध की मरम्मत शुरू करने की बात कह रहा है। साथ ही, प्रभावित किसानों को मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू करने का आश्वासन दिया गया है। हालांकि, किसानों का कहना है कि मुआवजा उनकी मेहनत और बर्बाद हुई फसल की लागत की भरपाई नहीं कर सकता। इस घटना ने एक बार फिर सिंचाई और जल प्रबंधन की व्यवस्था की पोल खोल दी है और स्थानीय प्रशासन के ढुलमुल रवैये पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। किसानों ने मांग की है कि इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।