
1. श्राद्ध कर्म: पितृ पक्ष के नियम और उनका महत्व
पितृ पक्ष का समय चल रहा है और इस दौरान श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है। इस वर्ष, श्राद्ध के लिए कई शुभ योग बन रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, पितरों का श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय करना चाहिए और भोजन के लिए कम से कम तीन ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक आमंत्रित करना चाहिए। यह भी सलाह दी जाती है कि श्राद्ध के दौरान घर में पवित्रता और शांति बनाए रखें, क्योंकि क्रोध और कलह से पितरों को तृप्ति नहीं मिलती है।
2. ‘कर्म’ और ‘धर्म’ का संबंध: स्वामी प्रेमानंद महाराज ने दिया जवाब
हाल ही में, वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने ‘कर्म’ और ‘धर्म’ के बीच के संबंध पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि ‘नाम जप’ से बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं, लेकिन जो कर्म प्रारब्ध बन गए हैं, उन्हें भोगना ही पड़ता है। उनका कहना है कि हर एक कर्म का फल इसी जीवन में भोगना है, और सच्चा धर्म सही कर्मों के चुनाव में निहित है।
3. विश्वकर्मा पूजा: 100 साल बाद बन रहा अद्भुत संयोग
इस साल विश्वकर्मा पूजा पर 100 साल बाद एक अद्भुत संयोग बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार, पूजा का शुभ मुहूर्त 17 सितंबर की सुबह से शुरू होकर दोपहर तक रहेगा। मान्यता है कि इस विशेष योग में की गई पूजा से व्यापार और कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
4. श्रावण मास और भगवान शिव: सावन के महत्व पर एक विशेष लेख
श्रावण मास, जिसे सावन के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव को समर्पित है। इस महीने में किए गए अनुष्ठान और पूजा का विशेष महत्व है। हाल ही में, देवघर के बाबा वैद्यनाथ धाम जैसे मंदिरों में सावन के दौरान साफ-सफाई और भीड़ प्रबंधन के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे, जिससे भक्तों को सुगम दर्शन हो सके।
5. धार्मिक पर्यटन: मंदिरों का कायाकल्प और विकास
भारतीय संस्कृति में धार्मिक पर्यटन का महत्व बढ़ता जा रहा है। कई प्रमुख मंदिरों का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर के आसपास के क्षेत्र का कायाकल्प किया जाएगा और वृंदावन में बांके बिहारी कॉरिडोर बनाया जा रहा है ताकि भक्तों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें।
6. जैन धर्म में पर्यूषण पर्व: ‘क्षमा’ और ‘आर्जव’ का महत्व
जैन धर्म का महत्वपूर्ण पर्युषण पर्व इस समय चर्चा में है। इस पर्व के दौरान ‘क्षमा’ (Forgiveness) और ‘आर्जव’ (Honesty) जैसे गुणों पर विशेष जोर दिया जाता है। इस पर्व का उद्देश्य आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति है। इस दौरान, श्रद्धालु व्रत-उपवास, स्वाध्याय और ध्यान के माध्यम से अपने कर्मों को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं।
7. ओणम: फसल और संस्कृति का उत्सव
केरल का प्रसिद्ध त्योहार ओणम हाल ही में मनाया गया। यह त्योहार राजा महाबली के अपने लोगों से मिलने के लिए धरती पर वापसी का प्रतीक है। ओणम के दौरान पुक्कलम (फूलों की रंगोली) और ओणम साद्या (पारंपरिक शाकाहारी भोज) जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र रहे। यह त्योहार भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धि को दर्शाता है।
8. अनंत चतुर्दशी: गणपति विसर्जन पर उठते सवाल
अनंत चतुर्दशी पर गणपति विसर्जन की परंपरा पर कुछ स्थानों पर सवाल उठ रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि श्री गणेश प्रथम पूज्य हैं और उनका विसर्जन नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, महाराष्ट्र समेत देशभर में गणेश चतुर्थी के बाद गणपति विसर्जन एक सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान बन चुका है।
9. गुरु पूर्णिमा: गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान
हिंदू और बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। यह दिन गुरुओं को सम्मान देने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन वेद व्यास की जयंती और गौतम बुद्ध के पहले उपदेश को समर्पित है। इस दिन श्रद्धालु अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
10. गणेश चतुर्थी: ईको-फ्रेंडली गणेश की बढ़ती लोकप्रियता
हाल ही में मनाई गई गणेश चतुर्थी के दौरान, ईको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं की लोकप्रियता में काफी वृद्धि देखी गई। मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनी प्रतिमाओं का उपयोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति बढ़ती जागरूकता को दर्शाता है। कई स्थानों पर 100 किलो की दाल से बनी गणेश प्रतिमाओं जैसी रचनात्मक पहलों को भी सराहा गया।